श्री महाभारत  »  पर्व 18: स्वर्गारोहण पर्व  »  अध्याय 5: भीष्म आदि वीरोंका अपने-अपने मूलस्वरूपमें मिलना और महाभारतका उपसंहार तथा माहात्म्य  »  श्लोक 22-23
 
 
श्लोक  18.5.22-23 
धर्ममेवाविशत् क्षत्ता राजा चैव युधिष्ठिर:॥ २२॥
अनन्तो भगवान‍् देव: प्रविवेश रसातलम्।
पितामहनियोगाद् वै यो योगाद् गामधारयत्॥ २३॥
 
 
अनुवाद
विदुर और राजा युधिष्ठिर स्वयं धर्मरूप में प्रविष्ट हो गए। बलरामजी साक्षात् भगवान अनंतदेव के अवतार थे। वे रसातल में अपने धाम को चले गए। ये वही अनंतदेव हैं जिन्होंने ब्रह्माजी की आज्ञा पाकर योगबल से इस पृथ्वी को धारण किया है। 22-23॥
 
Vidur and King Yudhishthir entered the form of Dharma itself. Balramji was actually the incarnation of Lord Anantdev. They went to their place in the abyss. This is the same Anantdev who has held this earth with the power of Yoga after receiving the permission of Brahmaji. 22-23॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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