श्री महाभारत  »  पर्व 18: स्वर्गारोहण पर्व  »  अध्याय 4: युधिष्ठिरका दिव्यलोकमें श्रीकृष्ण, अर्जुन आदिका दर्शन करना  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  18.4.3 
दीप्यमानं स्ववपुषा दिव्यैरस्त्रैरुपस्थितम्।
चक्रप्रभृतिभिर्घोरैर्दिव्यै: पुरुषविग्रहै:॥ ३॥
 
 
अनुवाद
उनके दिव्य रूप से अद्भुत तेज निकल रहा है। चक्र आदि दिव्य एवं भयंकर अस्त्र-शस्त्र दिव्य पुरुष के रूप में उनकी सेवा में उपस्थित हैं ॥3॥
 
A wonderful radiance is emanating from his divine form. Divine and fearsome weapons like chakra etc. are present in his service in the form of a divine man. ॥ 3॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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