श्री महाभारत  »  पर्व 18: स्वर्गारोहण पर्व  »  अध्याय 3: इन्द्र और धर्मका युधिष्ठिरको सान्त्वना देना तथा युधिष्ठिरका शरीर त्यागकर दिव्य लोकको जाना  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  18.3.35 
इदं तृतीयं भ्रातॄणामर्थे यत् स्थातुमिच्छसि।
विशुद्धोऽसि महाभाग सुखी विगतकल्मष:॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
अब यह तुम्हारी तीसरी परीक्षा थी; परन्तु इस बार भी तुमने अपने सुख की चिन्ता न करके अपने भाइयों के हित के लिए नरक में रहना चाहा, हे महान्! इस प्रकार तुम शुद्ध सिद्ध हुए हो। तुममें पाप का लेशमात्र भी नहीं है; अतः सुखी रहो॥ 35॥
 
‘Now this was the third time of your test; but this time also you did not care for your happiness and wanted to stay in hell for the benefit of your brothers, so great one! You have been proved pure in this way. There is not even a trace of sin in you; so be happy.॥ 35॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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