श्री महाभारत  »  पर्व 18: स्वर्गारोहण पर्व  »  अध्याय 3: इन्द्र और धर्मका युधिष्ठिरको सान्त्वना देना तथा युधिष्ठिरका शरीर त्यागकर दिव्य लोकको जाना  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  18.3.32 
एषा तृतीया जिज्ञासा तव राजन् कृता मया।
न शक्यसे चालयितुं स्वभावात् पार्थ हेतुत:॥ ३२॥
 
 
अनुवाद
'राजन्! यह तीसरी बार है जब मैंने आपकी परीक्षा ली है। पार्थ! कोई भी आपको किसी भी प्रकार से अपने स्वभाव से विचलित नहीं कर सकता।
 
‘King! This is the third time I have tested you. Partha! Nobody can make you deviate from your nature by any means.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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