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श्लोक 18.3.32  |
एषा तृतीया जिज्ञासा तव राजन् कृता मया।
न शक्यसे चालयितुं स्वभावात् पार्थ हेतुत:॥ ३२॥ |
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अनुवाद |
'राजन्! यह तीसरी बार है जब मैंने आपकी परीक्षा ली है। पार्थ! कोई भी आपको किसी भी प्रकार से अपने स्वभाव से विचलित नहीं कर सकता। |
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‘King! This is the third time I have tested you. Partha! Nobody can make you deviate from your nature by any means. |
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