श्री महाभारत  »  पर्व 18: स्वर्गारोहण पर्व  »  अध्याय 2: देवदूतका युधिष्ठिरको नरकका दर्शन कराना तथा भाइयोंका करुण-क्रन्दन सुनकर उनका वहीं रहनेका निश्चय करना  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  18.2.9 
तमहं यत्र तत्रस्थं द्रष्टुमिच्छामि सूर्यजम्।
अविज्ञातो मया योऽसौ घातित: सव्यसाचिना॥ ९॥
 
 
अनुवाद
मैं इस सूर्यपुत्र कर्ण को जहाँ कहीं भी हो, देखना चाहता हूँ; इसे न जानने के कारण ही मैंने इसे अर्जुन के द्वारा मरवा दिया॥9॥
 
I wish to see this Sun-son Karna wherever he is; because of not knowing him I got him killed by Arjun.॥ 9॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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