श्री महाभारत  »  पर्व 18: स्वर्गारोहण पर्व  »  अध्याय 2: देवदूतका युधिष्ठिरको नरकका दर्शन कराना तथा भाइयोंका करुण-क्रन्दन सुनकर उनका वहीं रहनेका निश्चय करना  »  श्लोक 40-41
 
 
श्लोक  18.2.40-41 
इत्युक्तास्ते तत: सर्वे समन्तादवभाषिरे।
कर्णोऽहं भीमसेनोऽहमर्जुनोऽहमिति प्रभो॥ ४०॥
नकुल: सहदेवोऽहं धृष्टद्युम्नोऽहमित्युत।
द्रौपदी द्रौपदेयाश्च इत्येवं ते विचुक्रुशु:॥ ४१॥
 
 
अनुवाद
उनके इस प्रकार पूछने पर वे सब लोग चारों ओर से बोलने लगे - ‘प्रभु! मैं कर्ण हूँ। मैं भीमसेन हूँ। मैं अर्जुन हूँ। मैं नकुल हूँ। मैं सहदेव हूँ। मैं धृष्टद्युम्न हूँ। मैं द्रौपदी हूँ और हम द्रौपदी के पुत्र हैं।’ इस प्रकार वे सब लोग चिल्लाकर अपना नाम बताने लगे॥40-41॥
 
On his asking in this manner all of them started speaking from all sides- 'Prabhu! I am Karna. I am Bhimsen. I am Arjun. I am Nakula. I am Sahadeva. I am Dhrishtadyumna. I am Draupadi and we are the sons of Draupadi.' In this manner all of them started shouting and telling their names.॥ 40-41॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.