श्री महाभारत  »  पर्व 18: स्वर्गारोहण पर्व  »  अध्याय 2: देवदूतका युधिष्ठिरको नरकका दर्शन कराना तथा भाइयोंका करुण-क्रन्दन सुनकर उनका वहीं रहनेका निश्चय करना  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  18.2.33 
आयाति त्वयि दुर्धर्षे वाति पुण्य: समीरण:।
तव गन्धानुगस्तात येनास्मान् सुखमागमत्॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
हे महारथी! आपके आते ही अत्यन्त पवित्र वायु बहने लगी। हे प्रिये! वह वायु आपके शरीर की सुगन्धि ला रही है, जिससे हमें परम सुख प्राप्त हुआ है॥ 33॥
 
‘As soon as you, the great warrior, arrived, a very pure wind started blowing. O dear! That wind is bringing the fragrance of your body which has given us immense pleasure.॥ 33॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.