श्री महाभारत  »  पर्व 18: स्वर्गारोहण पर्व  »  अध्याय 2: देवदूतका युधिष्ठिरको नरकका दर्शन कराना तथा भाइयोंका करुण-क्रन्दन सुनकर उनका वहीं रहनेका निश्चय करना  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  18.2.32 
भो भो धर्मज राजर्षे पुण्याभिजन पाण्डव।
अनुग्रहार्थमस्माकं तिष्ठ तावन्मुहूर्तकम्॥ ३२॥
 
 
अनुवाद
हे धर्मनन्दन! हे राजन! हे पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर! हे पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर! हम पर कृपा करने के लिए आप दो घड़ी यहाँ रुकें। 32॥
 
O Dharmanandan! Oh king! O Yudhishthir, son of Pandu, born in a holy family! Please stay here for two hours to show your kindness to us. 32॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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