श्री महाभारत  »  पर्व 18: स्वर्गारोहण पर्व  »  अध्याय 2: देवदूतका युधिष्ठिरको नरकका दर्शन कराना तथा भाइयोंका करुण-क्रन्दन सुनकर उनका वहीं रहनेका निश्चय करना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  18.2.24 
करम्भवालुकास्तप्ता आयसीश्च शिला: पृथक्।
लोहकुम्भीश्च तैलस्य क्वाथ्यमाना: समन्तत:॥ २४॥
 
 
अनुवाद
कहीं गरम रेत बिछी है, कहीं गरम लोहे की बड़ी-बड़ी चट्टानें रखी हैं। चारों ओर लोहे के बर्तनों में तेल उबल रहा है॥24॥
 
Somewhere hot sand is spread and somewhere big rocks of heated iron are kept. All around, oil is being boiled in iron pots.॥ 24॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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