श्री महाभारत  »  पर्व 18: स्वर्गारोहण पर्व  »  अध्याय 2: देवदूतका युधिष्ठिरको नरकका दर्शन कराना तथा भाइयोंका करुण-क्रन्दन सुनकर उनका वहीं रहनेका निश्चय करना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  18.2.12 
किं मे भ्रातृविहीनस्य स्वर्गेण सुरसत्तमा:।
यत्र ते मम स स्वर्गो नायं स्वर्गो मतो मम॥ १२॥
 
 
अनुवाद
हे देवश्रेष्ठ! यदि मैं अपने भाइयों से अलग हो जाऊँ तो मुझे इस स्वर्ग की क्या आवश्यकता है? जहाँ मेरे भाई हैं, वही मेरा स्वर्ग है। उनके बिना मैं इस संसार को स्वर्ग नहीं मानता॥12॥
 
O best of the gods! What do I need from this heaven if I am separated from my brothers? Wherever my brothers are, that is my heaven. Without them, I do not consider this world to be heaven.॥12॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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