श्री महाभारत  »  पर्व 18: स्वर्गारोहण पर्व  »  अध्याय 1: स्वर्गमें नारद और युधिष्ठिरकी बातचीत  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  18.1.17 
ये चान्येऽपि परिक्लेशा युष्माकं ज्ञातिकारिता:।
संग्रामेष्वथ वान्यत्र न तान् संस्मर्तुमर्हसि॥ १७॥
 
 
अनुवाद
युद्ध में अथवा अन्यत्र अपने भाई-बन्धुओं से जो कष्ट तुम्हें सहने पड़े हैं, उनका स्मरण करना यहाँ तुम्हारे लिए उचित नहीं है॥17॥
 
It is not appropriate for you to remember here all the sufferings you have had to endure from your brothers and relatives in the war or elsewhere.॥ 17॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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