श्री महाभारत  »  पर्व 17: महाप्रस्थानिक पर्व  »  अध्याय 3: युधिष्ठिरका इन्द्र और धर्म आदिके साथ वार्तालाप, युधिष्ठिरका अपने धर्ममें दृढ़ रहना तथा सदेह स्वर्गमें जाना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  17.3.25 
स तं रथं समास्थाय राजा कुरुकुलोद्वह:।
ऊर्ध्वमाचक्रमे शीघ्रं तेजसाऽऽवृत्य रोदसी॥ २५॥
 
 
अनुवाद
उस रथ पर बैठकर कुरुवंश के पुत्र राजा युधिष्ठिर अपने तेज से पृथ्वी और आकाश को व्याप्त करते हुए बड़े वेग से ऊपर की ओर बढ़ने लगे ॥25॥
 
Sitting in that chariot, King Yudhishthira, who was the son of the Kuru clan, began moving upwards at a great speed, permeating the earth and the sky with his brilliance. ॥25॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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