श्री महाभारत  »  पर्व 17: महाप्रस्थानिक पर्व  »  अध्याय 3: युधिष्ठिरका इन्द्र और धर्म आदिके साथ वार्तालाप, युधिष्ठिरका अपने धर्ममें दृढ़ रहना तथा सदेह स्वर्गमें जाना  »  श्लोक 23-24
 
 
श्लोक  17.3.23-24 
वैशम्पायन उवाच
ततो धर्मश्च शक्रश्च मरुतश्चाश्विनावपि।
देवा देवर्षयश्चैव रथमारोप्य पाण्डवम्॥ २३॥
प्रययु: स्वैर्विमानैस्ते सिद्धा: कामविहारिण:।
सर्वे विरजस: पुण्या: पुण्यवाग्बुद्धिकर्मिण:॥ २४॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं - ऐसा कहकर धर्म, इन्द्र, मरुद्गण, अश्विनीकुमार, देवता और देवियाँ पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर को रथ पर बिठाकर अपने-अपने विमानों द्वारा स्वर्गलोक को चले गए। वे सब अपनी इच्छानुसार विचरण करने के लिए स्वतन्त्र, काम-गुणों से रहित पुण्यात्मा, वाणी, बुद्धि और कर्म से शुद्ध तथा उत्तम थे। 23-24॥
 
Vaishampayanji says - Saying this, Dharma, Indra, Marudgan, Ashwini Kumar, Gods and Goddesses placed Pandu's son Yudhishthir on the chariot and departed for heaven in their respective planes. All of them were free to roam as per their wish, virtuous souls without sexual qualities, pure in speech, intelligence and deeds and perfect. 23-24॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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