श्री महाभारत  »  पर्व 17: महाप्रस्थानिक पर्व  »  अध्याय 3: युधिष्ठिरका इन्द्र और धर्म आदिके साथ वार्तालाप, युधिष्ठिरका अपने धर्ममें दृढ़ रहना तथा सदेह स्वर्गमें जाना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  17.3.16 
भीतिप्रदानं शरणागतस्य
स्त्रिया वधो ब्राह्मणस्वापहार:।
मित्रद्रोहस्तानि चत्वारि शक्र
भक्तत्यागश्चैव समो मतो मे॥ १६॥
 
 
अनुवाद
शरण में आये हुए को डराना, स्त्री को मारना, ब्राह्मण का धन लूटना और मित्रों के साथ विश्वासघात करना - यदि ये चार पाप एक ओर हों और भक्त का परित्याग दूसरी ओर, तो मेरी दृष्टि में यह अकेला ही चारों के बराबर है।
 
To frighten one who has come for refuge, to kill a woman, to plunder the wealth of a Brahmin, and to betray one's friends - if these four sins are on one hand, and forsaking a devotee on the other, then in my opinion this alone is equal to all the four.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.