श्री महाभारत  »  पर्व 17: महाप्रस्थानिक पर्व  »  अध्याय 2: मार्गमें द्रौपदी, सहदेव, नकुल, अर्जुन और भीमसेनका गिरना तथा युधिष्ठिरद्वारा प्रत्येकके गिरनेका कारण बताया जाना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  17.2.10 
युधिष्ठिर उवाच
आत्मन: सदृशं प्राज्ञं नैषोऽमन्यत कंचन।
तेन दोषेण पतितस्तस्मादेष नृपात्मज:॥ १०॥
 
 
अनुवाद
युधिष्ठिर बोले: इस राजकुमार सहदेव ने अपने समान किसी को विद्वान या बुद्धिमान नहीं समझा; इसी दोष के कारण उसका पतन हुआ है॥ 10॥
 
Yudhishthira said: This prince Sahadev did not consider anyone as learned or intelligent as himself; hence, this fault has caused his downfall.॥ 10॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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