श्री महाभारत  »  पर्व 16: मौसल पर्व  »  अध्याय 8: अर्जुन और व्यासजीकी बातचीत  »  श्लोक 24-25h
 
 
श्लोक  16.8.24-25h 
श्रुत्वैव हि गतं विष्णुं ममापि मुमुहुर्दिश:।
प्रणष्टज्ञातिवीर्यस्य शून्यस्य परिधावत:॥ २४॥
उपदेष्टुं मम श्रेयो भवानर्हति सत्तम।
 
 
अनुवाद
सर्वव्यापी भगवान श्रीकृष्ण के अन्तर्धान हो जाने का समाचार सुनकर मुझे दिशाओं का ज्ञान नष्ट हो गया है। मेरे भाई-बन्धु तो नष्ट हो ही गए हैं, अब मेरा पराक्रम भी नष्ट हो गया है; अतः मैं खाली मन से इधर-उधर भाग रहा हूँ। हे मुनियों में श्रेष्ठ मुनि! कृपा करके मुझे यह उपदेश दीजिए कि मेरा उद्धार कैसे हो?॥ 24 1/2॥
 
On hearing that the omnipresent Lord Krishna has disappeared, I lose all knowledge of directions. My brothers and relatives have already perished, and now my prowess is also lost; therefore, I am running here and there with an empty heart. O great sage among saints! Kindly give me this advice as to how I will be saved?॥ 24 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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