श्री महाभारत  »  पर्व 16: मौसल पर्व  »  अध्याय 5: अर्जुनका द्वारकामें आना और द्वारका तथा श्रीकृष्ण-पत्नियोंकी दशा देखकर दुखी होना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  16.5.1 
वैशम्पायन उवाच
दारुकोऽपि कुरून् गत्वा दृष्ट्वा पार्थान् महारथान्।
आचष्ट मौसले वृष्णीनन्योन्येनोपसंहृतान्॥ १॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायन कहते हैं: जनमेजय! दारुक भी कुरु देश में गया और महाबली कुन्तीकुमारों से मिलकर उनसे कहा कि सब वृष्णिवंशी लोग भयंकर युद्ध में एक-दूसरे से मारे गए हैं॥1॥
 
Vaishmpayana says: Janamejaya! Daruk also went to Kuru country and met the mighty warriors Kuntikumar and told them that all the Vrishni clans were killed by each other in a fierce battle.॥ 1॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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