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श्लोक 16.3.18  |
क: क्षत्रियोऽहन्यमान: सुप्तान् हन्यान्मृतानिव।
तन्न मृष्यन्ति हार्दिक्य यादवा यत् त्वया कृतम्॥ १८॥ |
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अनुवाद |
हार्दिक्य! तुम्हारे सिवा ऐसा कौन क्षत्रिय है जो रात में मुर्दे की तरह बेहोश पड़े लोगों को मार डाले, जबकि उस पर स्वयं कोई आक्रमण न हुआ हो। यदुवंशी तुम्हारे द्वारा किए गए अन्याय को कभी क्षमा नहीं करेंगे।' |
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Hardikya! Who else other than you is such a Kshatriya who would kill people lying unconscious like dead bodies in the night even though he himself is not attacked. The Yaduvanshis will never forgive the injustice you have done.' |
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