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श्लोक 16.2.6  |
चीचीकूचीति वाशन्ति सारिका वृष्णिवेश्मसु।
नोपशाम्यति शब्दश्च स दिवारात्रमेव हि॥ ६॥ |
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अनुवाद |
वृष्णि वंश के घरों में मैनाएँ दिन-रात चहचहाती रहती थीं। उनकी आवाज़ एक क्षण के लिए भी नहीं रुकती थी। |
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In the houses of the Vrishni clan the mynas used to chirp day and night. Their voices never stopped even for a moment. |
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