श्री महाभारत  »  पर्व 16: मौसल पर्व  »  अध्याय 2: द्वारकामें भयंकर उत्पात देखकर भगवान‍् श्रीकृष्णका यदुवंशियोंको तीर्थयात्राके लिये आदेश देना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  16.2.6 
चीचीकूचीति वाशन्ति सारिका वृष्णिवेश्मसु।
नोपशाम्यति शब्दश्च स दिवारात्रमेव हि॥ ६॥
 
 
अनुवाद
वृष्णि वंश के घरों में मैनाएँ दिन-रात चहचहाती रहती थीं। उनकी आवाज़ एक क्षण के लिए भी नहीं रुकती थी।
 
In the houses of the Vrishni clan the mynas used to chirp day and night. Their voices never stopped even for a moment.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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