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श्लोक 16.2.15  |
पुण्याहे वाच्यमाने तु जपत्सु च महात्मसु।
अभिधावन्त: श्रूयन्ते न चादृश्यत कश्चन॥ १५॥ |
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अनुवाद |
जब पुण्याहवाचन हो रहा था और महात्मागण कीर्तन करने लगे, तब कुछ लोगों के दौड़ने की ध्वनि तो सुनाई दी, परन्तु कोई दिखाई नहीं दिया ॥15॥ |
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When the Punyahavachan was being recited and the great souls began to chant, the sound of some people running could be heard but no one could be seen.॥ 15॥ |
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