श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 7: युधिष्ठिरको धृतराष्ट्रके द्वारा राजनीतिका उपदेश  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  15.7.4 
व्यसनं भेदनं चैव शत्रूणां कारयेत् तत:।
कर्षणं भीषणं चैव युद्धे चैव बलक्षयम्॥ ४॥
 
 
अनुवाद
वहाँ यह प्रयत्न करना चाहिए कि शत्रुओं को कोई संकट आ जाए अथवा वे फूट पड़ जाएँ, वे दुर्बल और भयभीत हो जाएँ तथा युद्ध में उनकी सेना नष्ट हो जाए ॥4॥
 
There one should try to ensure that the enemies face some danger or are divided, they become weak and frightened and their army gets destroyed in the war. ॥ 4॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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