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श्लोक 15.7.23  |
अश्वमेधसहस्रेण यो यजेत् पृथिवीपति:।
पालयेद् वापि धर्मेण प्रजास्तुल्यं फलं लभेत्॥ २३॥ |
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अनुवाद |
जो राजा एक हजार अश्वमेध यज्ञ करता है और जो राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करता है, वे दोनों एक ही फल प्राप्त करते हैं। |
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The king who performs a thousand Ashwamedha sacrifices and the other king who looks after his subjects righteously, both attain the same result. 23. |
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इति श्रीमहाभारते आश्रमवासिके पर्वणि आश्रमवासपर्वणि धृतराष्ट्रोपसंवादे सप्तमोऽध्याय:॥ ७॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिकपर्वके अन्तर्गत आश्रमवासपर्वमें धृतराष्ट्रका उपसंवादविषयक सातवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ७॥
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