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श्लोक 15.7.18  |
सर्वथैव महाराज शरीरं धारयेदिह।
प्रेत्य चेह च कर्तव्यमात्मनि:श्रेयसं परम्॥ १८॥ |
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अनुवाद |
महाराज! इस लोक में सब प्रकार से शरीर की रक्षा करनी चाहिए और उसके द्वारा इस लोक तथा परलोक में अपने कल्याण के लिए उत्तम प्रयत्न करना चाहिए ॥18॥ |
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Maharaj! In this world one must protect the body by every means and by that one must make the best efforts for one's welfare in this world as well as the next. ॥18॥ |
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