श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 7: युधिष्ठिरको धृतराष्ट्रके द्वारा राजनीतिका उपदेश  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  15.7.14 
तूणाश्मानं वाजिरथप्रवाहां
ध्वजद्रुमै: संवृतकूलरोधसम्।
पदातिनागैर्बहुकर्दमां नदीं
सपत्ननाशे नृपति: प्रयोजयेत्॥ १४॥
 
 
अनुवाद
शत्रुओं के नाश के लिए राजा को अपनी सेना का उपयोग उस नदी के समान करना चाहिए जिसके तरकश शिलाओं के समान हों, जिसके प्रवाह में घोड़े और रथ शोभायमान हों, जिसके तट ध्वजारूपी वृक्षों से आच्छादित हों और जिसके भीतर पैदल सेना और हाथी गहरी कीचड़ के समान दिखाई देते हों॥14॥
 
For the destruction of the enemies, the king should use his army as a river in which quivers are like rocks, horses and chariots look beautiful in its flow, whose banks are covered with trees in the form of flags and inside which the infantry and elephants appear like deep mud.॥ 14॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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