श्री महाभारत » पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व » अध्याय 7: युधिष्ठिरको धृतराष्ट्रके द्वारा राजनीतिका उपदेश » श्लोक 1 |
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| | श्लोक 15.7.1  | धृतराष्ट्र उवाच
संधिविग्रहमप्यत्र पश्येथा राजसत्तम।
द्वियोनिं विविधोपायं बहुकल्पं युधिष्ठिर॥ १॥ | | | अनुवाद | धृतराष्ट्र बोले, "हे महाराज युधिष्ठिर! आपको संधि और युद्ध पर भी दृष्टि रखनी चाहिए। यदि शत्रु बलवान हो, तो उसके साथ संधि कर लो और यदि निर्बल हो, तो उसके साथ युद्ध करो - संधि और युद्ध के ये दो आधार हैं। इनके प्रयोग के तरीके भी अनेक प्रकार के हैं और इनके भी अनेक प्रकार हैं॥1॥ | | Dhritarashtra said, "O great king Yudhishthira! You should also keep an eye on treaty and war. If the enemy is strong, then enter into a treaty with him and if he is weak, then wage war with him - these are the two bases of treaty and war. The ways of using them are also of many types and there are many types of them too.॥1॥ |
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