श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 5: धृतराष्ट्रके द्वारा युधिष्ठिरको राजनीतिका उपदेश  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  15.5.14 
अमात्यानुपधातीतान् पितृपैतामहान् शुचीन्।
दान्तान् कर्मसु पुण्यांश्च पुण्यान् सर्वेषु योजये:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
जो परखे हुए और निष्कपट भाव से काम करने वाले हों, जो अपने पूर्वजों के समय से ही काम देखते आए हों, जो भीतर-बाहर से शुद्ध हों, जन्म और कर्म से अनुशासित और पवित्र हों, उन्हें ही सब प्रकार के उत्तरदायित्वपूर्ण कार्यों के लिए नियुक्त करो।॥14॥
 
Appoint only those ministers who are tried and tested and work with sincerity, who have been looking after the work since the time of their forefathers, who are pure from within and outside, disciplined and pure by birth and deeds, for all kinds of responsible tasks.॥ 14॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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