श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 4: व्यासजीके समझानेसे युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको वनमें जानेके लिये अनुमति देना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  15.4.6 
वैशम्पायन उवाच
इत्युक्त: स तदा राजा व्यासेनाद्भुतकर्मणा।
प्रत्युवाच महातेजा धर्मराजो महामुनिम्॥ ६॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं: जनमेजय! जब अद्भुत व्यासजी ने ऐसा कहा, तब महाबली धर्मराज युधिष्ठिर ने उन महामुनि को इस प्रकार उत्तर दिया:॥6॥
 
Vaishmpayana says: Janamejaya! When the wonderful Vyasa said this, the mighty Dharmaraja Yudhishthira replied to that great sage in the following manner:॥ 6॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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