श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 4: व्यासजीके समझानेसे युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको वनमें जानेके लिये अनुमति देना  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  15.4.3 
गान्धारी च महाभागा प्राज्ञा करुणवेदिनी।
पुत्रशोकं महाराज धैर्येणोद्वहते भृशम्॥ ३॥
 
 
अनुवाद
महाराज! महाभागा गांधारी अत्यंत ज्ञानी और करुणा में पारंगत हैं; इसीलिए वे अपने महान पुत्र का वियोग धैर्यपूर्वक सहन कर रही हैं॥3॥
 
Maharaj! Mahabhaga Gandhari is extremely knowledgeable and experienced in compassion; That is why she has been bearing the loss of her great son patiently. 3॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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