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श्लोक 15.4.22  |
इदं तु याचे नृपते त्वामहं शिरसा नत:।
क्रियतां तावदाहारस्ततो गच्छाश्रमं प्रति॥ २२॥ |
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अनुवाद |
परन्तु हे मनुष्यों के स्वामी! इस समय मैं आपके चरणों में सिर झुकाकर प्रार्थना करता हूँ कि आप पहले भोजन करें और फिर आश्रम में जाएँ।॥22॥ |
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But O Lord of men! At this moment I bow my head at your feet and pray that you first take your meal and then go to the ashram.'॥ 22॥ |
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इति श्रीमहाभारते आश्रमवासिके पर्वणि आश्रमवासपर्वणि व्यासानुज्ञायां चतुर्थोऽध्याय:॥ ४॥
इसप्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिकपर्वके अन्तर्गत आश्रमवासपर्वमें व्यासकी आज्ञाविषयक चौथा अध्याय पूरा हुआ॥ ४॥
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