श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 4: व्यासजीके समझानेसे युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको वनमें जानेके लिये अनुमति देना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  15.4.16 
त्वया चायं नरव्याघ्र गुरुशुश्रूषयानघ।
आराधित: सभृत्येन गान्धारी च यशस्विनी॥ १६॥
 
 
अनुवाद
भोले बाघ! सेवकों सहित तुमने भी गुरु की सेवा की भावना से उनकी तथा प्रसिद्ध देवी गांधारी देवी की पूजा की है। 16॥
 
Innocent tiger! Along with the servants, you too have worshiped him and the famous Goddess Gandhari Devi in ​​the spirit of serving the Guru. 16॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.