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श्लोक 15.4.16  |
त्वया चायं नरव्याघ्र गुरुशुश्रूषयानघ।
आराधित: सभृत्येन गान्धारी च यशस्विनी॥ १६॥ |
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अनुवाद |
भोले बाघ! सेवकों सहित तुमने भी गुरु की सेवा की भावना से उनकी तथा प्रसिद्ध देवी गांधारी देवी की पूजा की है। 16॥ |
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Innocent tiger! Along with the servants, you too have worshiped him and the famous Goddess Gandhari Devi in the spirit of serving the Guru. 16॥ |
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