श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 4: व्यासजीके समझानेसे युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको वनमें जानेके लिये अनुमति देना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  15.4.14 
क्रतुभिर्दक्षिणावद्भी रत्नपर्वतशोभितै:।
महद्भिरिष्टं गौर्भुक्ता प्रजाश्च परिपालिता:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
उन्होंने रत्नों से युक्त अनेक महान यज्ञ किये हैं, प्रचुर दक्षिणा से युक्त हैं, पृथ्वी का राज्य भोगा है और अपनी प्रजा का भली-भाँति पालन किया है।
 
He has performed many great yagnas adorned with mountains of gems and endowed with abundant dakshina, has enjoyed the kingdom of the earth and has taken good care of his subjects.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.