श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 4: व्यासजीके समझानेसे युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको वनमें जानेके लिये अनुमति देना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  15.4.1 
व्यास उवाच
युधिष्ठिर महाबाहो यथाह कुरुनन्दन:।
धृतराष्ट्रो महातेजास्तत् कुरुष्वाविचारयन्॥ १॥
 
 
अनुवाद
व्यासजी बोले, 'हे महाबाहु युधिष्ठिर! कुरुवंश को आनन्द प्रदान करने वाले महाबली धृतराष्ट्र जो कुछ कह रहे हैं, उसे बिना विचारे ही करो।'
 
Vyasa said, 'O mighty-armed Yudhishthira! Whatever the mighty Dhritarashtra, who has brought joy to the Kuru clan, is saying, do it without thinking.'
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.