श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 37: नारदजीसे धृतराष्ट्र आदिके दावानलमें दग्ध हो जानेका हाल जानकर युधिष्ठिर आदिका शोक करना  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  15.37.45 
तस्मिन्नुपरते शब्दे मुहूर्तादिव भारत।
निगृह्य बाष्पं धैर्येण धर्मराजोऽब्रवीदिदम्॥ ४५॥
 
 
अनुवाद
भरतनंदन! दो घड़ी के बाद जब रोने-धोने का शब्द बंद हो गया, तब धर्मराज युधिष्ठिर ने धैर्यपूर्वक अपने आंसू पोंछे और नारदजी से इस प्रकार कहने लगे।
 
Bharatanandan! After two hours when the sound of weeping and wailing stopped, then Dharmaraja Yudhishthira patiently wiped his tears and started speaking to Naradji in this manner.
 
इति श्रीमहाभारते आश्रमवासिके पर्वणि नारदागमनपर्वणि दावाग्निना धृतराष्ट्रादिदाहे सप्तत्रिंशोऽध्याय:॥ ३७॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिकपर्वके अन्तर्गत नारदागमनपर्वमें धृतराष्ट्र आदिका दावाग्निसे दाहविषयक सैंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ३७॥

 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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