श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 37: नारदजीसे धृतराष्ट्र आदिके दावानलमें दग्ध हो जानेका हाल जानकर युधिष्ठिर आदिका शोक करना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  15.37.4 
के देशा: परिदृष्टास्ते किं च कार्यं करोमि ते।
तद् ब्रूहि द्विजमुख्य त्वं त्वं ह्यस्माकं परा गति:॥ ४॥
 
 
अनुवाद
विप्रवर! इस समय में आपने किन-किन देशों का भ्रमण किया है? बताइए, मैं आपकी क्या सेवा करूँ? क्योंकि आप ही हमारे लिए परम मोक्ष हैं।॥4॥
 
Vipravara! Which countries have you visited during this time? Tell me what service can I render to you? Because you are the ultimate salvation for us.'॥ 4॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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