श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 37: नारदजीसे धृतराष्ट्र आदिके दावानलमें दग्ध हो जानेका हाल जानकर युधिष्ठिर आदिका शोक करना  »  श्लोक 31-32
 
 
श्लोक  15.37.31-32 
गान्धारी च महाभागा जननी च पृथा तव॥ ३१॥
दावाग्निना समायुक्ते स च राजा पिता तव।
संजयस्तु महामात्रस्तस्माद् दावादमुच्यत॥ ३२॥
 
 
अनुवाद
इसके बाद महाभागा गांधारी, आपकी माता कुन्ती और आपके चाचा राजा धृतराष्ट्र- ये तीनों ही वन की आग में जलकर भस्म हो गये; किन्तु महामात्य संजय उस वन की आग से बच गये हैं ॥31-32॥
 
After this, Mahabhaga Gandhari, your mother Kunti and your uncle King Dhritarashtra – all three of them were burnt to ashes in the forest fire; But Mahamatya Sanjay has survived that forest fire. 31-32॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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