श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 37: नारदजीसे धृतराष्ट्र आदिके दावानलमें दग्ध हो जानेका हाल जानकर युधिष्ठिर आदिका शोक करना  »  श्लोक 23-24h
 
 
श्लोक  15.37.23-24h 
गच्छ संजय यत्राग्निर्न त्वां दहति कर्हिचित्॥ २३॥
वयमत्राग्निना युक्ता गमिष्याम: परां गतिम्।
 
 
अनुवाद
‘संजय! तुम किसी ऐसे स्थान पर भाग जाओ जहाँ यह अग्नि तुम्हें जला न सके। अब हम यहीं अग्नि में अपनी आहुति देकर परम मोक्ष प्राप्त करेंगे।’॥23 1/2॥
 
‘Sanjay! You should run away to a place where this fire cannot burn you. We will now sacrifice ourselves in the fire here and attain the ultimate salvation.’॥ 23 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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