श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 37: नारदजीसे धृतराष्ट्र आदिके दावानलमें दग्ध हो जानेका हाल जानकर युधिष्ठिर आदिका शोक करना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  15.37.18 
तत: कदाचिद् गङ्गाया: कच्छे स नृपसत्तम:।
गङ्गायामाप्लुतो धीमानाश्रमाभिमुखोऽभवत्॥ १८॥
 
 
अनुवाद
तत्पश्चात् एक दिन बुद्धिमान् एवं कुलीन धृतराष्ट्र ने गंगाजी के तट पर जाकर उनके जल में डुबकी लगाई और स्नान करके अपने आश्रम की ओर चल पड़े ॥18॥
 
After that, one day, the intelligent and noble Dhritarashtra went to the banks of Ganga and took a dip in its waters and after bathing, he started towards his ashram. 18॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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