श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 37: नारदजीसे धृतराष्ट्र आदिके दावानलमें दग्ध हो जानेका हाल जानकर युधिष्ठिर आदिका शोक करना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  15.37.12 
आतस्थे स तपस्तीव्रं पिता तव तपोधन:।
वीटां मुखे समाधाय वायुभक्षोऽभवन्मुनि:॥ १२॥
 
 
अनुवाद
वहाँ जाकर तुम्हारे चाचा, जो महातपस्वी पुरुष थे, कठोर तप करने लगे। वे पत्थर का टुकड़ा मुँह में रखते, हवा खाते और मौन रहते॥12॥
 
Going there, your uncle, a man of great penance, started performing rigorous penance. He would keep a piece of stone in his mouth, eat air and remain silent.॥ 12॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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