श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 37: नारदजीसे धृतराष्ट्र आदिके दावानलमें दग्ध हो जानेका हाल जानकर युधिष्ठिर आदिका शोक करना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  15.37.1 
वैशम्पायन उवाच
द्विवर्षोपनिवृत्तेषु पाण्डवेषु यदृच्छया।
देवर्षिर्नारदो राजन्नाजगाम युधिष्ठिरम्॥ १॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं - 'जनमेजय! जब पाण्डवों को आश्रम छोड़े दो वर्ष बीत गये, तब एक दिन भगवान की इच्छा से नारद मुनि घूमते-घूमते राजा युधिष्ठिर के यहाँ पहुँचे।
 
Vaishmpayana says, 'Janamejaya! When two years had passed since the Pandavas left the hermitage, one day the sage Narada, by the will of God, while wandering about, reached the place of King Yudhishthira.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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