श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 36: व्यासजीकी आज्ञासे धृतराष्ट्र आदिका पाण्डवोंको विदा करना और पाण्डवोंका सदलबल हस्तिनापुरमें आना  »  श्लोक 6-8h
 
 
श्लोक  15.36.6-8h 
धृतराष्ट्र महाबाहो शृणु कौरवनन्दन।
श्रुतं ते ज्ञानवृद्धानामृषीणां पुण्यकर्मणाम्॥ ६॥
श्रद्धाभिजनवृद्धानां वेदवेदाङ्गवेदिनाम्।
धर्मज्ञानां पुराणानां वदतां विविधा: कथा:॥ ७॥
मा स्म शोके मन: कार्षीर्दिष्टे न व्यथते बुध:।
 
 
अनुवाद
'कौरवनन्दन, महाबाहु धृतराष्ट्र! तुमने प्राचीनकाल के उन महर्षियों के मुख से नाना प्रकार की कथाएँ सुनी हैं, जो श्रद्धा और कुल में उच्च थे, वेद-वेदान्त के विद्वान थे, विद्या में वृद्ध थे, धर्मात्मा और धर्म के ज्ञाता थे; अतः तुम अपने मन से शोक को दूर कर दो; क्योंकि विद्वान पुरुष दुःख को प्रारब्ध के विधान के अनुसार नहीं मानते।'
 
‘Kauravanandan, mighty-armed Dhritarashtra! You have heard different types of stories from the mouths of ancient Maharishis who were high in faith and family, learned in Vedas and Vedas, old in knowledge, virtuous and knowledgeable in religion; Therefore, remove sorrow from your mind; Because learned men do not consider sorrow as per destiny's law. 6-7 1/2"
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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