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श्लोक 15.36.45-46h  |
एवमुक्त: स राजर्षिर्धर्मराज्ञा महात्मना॥ ४५॥
अनुजज्ञे स कौरव्यमभिनन्द्य युधिष्ठिरम्। |
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अनुवाद |
महात्मा धर्मराज की यह बात सुनकर मुनि धृतराष्ट्र ने कुरुनन्दन युधिष्ठिर का सत्कार किया और उन्हें जाने की आज्ञा दी। 45 1/2॥ |
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On hearing this from Mahatma Dharamraj, sage Dhritarashtra greeted Kurunandan Yudhishthir and ordered him to leave. 45 1/2॥ |
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