श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 36: व्यासजीकी आज्ञासे धृतराष्ट्र आदिका पाण्डवोंको विदा करना और पाण्डवोंका सदलबल हस्तिनापुरमें आना  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  15.36.28 
विसर्जयति मां राजा गान्धारी च यशस्विनी।
भवत्यां बद्धचित्तस्तु कथं यास्यामि दु:खित:॥ २८॥
 
 
अनुवाद
'माता! राजा और प्रसिद्ध गांधारी देवी भी मुझे घर लौटने की आज्ञा दे रहे हैं; परंतु मेरा मन आपमें ही रमा हुआ है। जाने का नाम सुनते ही मैं अत्यंत दुःखी हो जाता हूँ। ऐसी अवस्था में मैं कैसे जा सकूँगा?॥28॥
 
‘Mother! The king and the famous Gandhari Devi are also ordering me to return home; but my mind is engrossed in you. I become very sad at the mention of going. How will I be able to go in such a condition?॥28॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.