श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 36: व्यासजीकी आज्ञासे धृतराष्ट्र आदिका पाण्डवोंको विदा करना और पाण्डवोंका सदलबल हस्तिनापुरमें आना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  15.36.23 
वैशम्पायन उवाच
इत्युक्तवचनं तं तु नृपो राजानमब्रवीत्।
न मामर्हसि धर्मज्ञ परित्यक्तुमनागसम्॥ २३॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! जब राजा धृतराष्ट्र ने ऐसी बात कही, तब युधिष्ठिर ने उनसे कहा - हे धर्म के ज्ञाता राजन! आप मेरा परित्याग न करें, क्योंकि मैं सर्वथा निर्दोष हूँ॥ 23॥
 
Vaishmpayana says: Janamejaya! When King Dhritarashtra said such a thing, then Yudhishthira said to him: O King, who is the knower of Dharma, do not abandon me, for I am completely innocent.॥ 23॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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