श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 36: व्यासजीकी आज्ञासे धृतराष्ट्र आदिका पाण्डवोंको विदा करना और पाण्डवोंका सदलबल हस्तिनापुरमें आना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  15.36.21 
त्वय्यद्य पिण्ड: कीर्तिश्च कुलं चेदं प्रतिष्ठितम्।
श्वो वाद्य वा महाबाहो गम्यतां पुत्र मा चिरम्॥ २१॥
 
 
अनुवाद
महाबाहो! आज से पितरों के तर्पण, यश और इस कुल का भार तुम्हारे ऊपर है। पुत्र! तुम्हें आज या कल यहाँ से जाना ही होगा; विलम्ब न करो।
 
‘Mahabaho! From today, the burden of the ancestors' offerings, good fame and this family is on you. Son! You must leave today or tomorrow; do not delay.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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