श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 36: व्यासजीकी आज्ञासे धृतराष्ट्र आदिका पाण्डवोंको विदा करना और पाण्डवोंका सदलबल हस्तिनापुरमें आना  »  श्लोक 19-20
 
 
श्लोक  15.36.19-20 
दुर्योधनप्रभृतयो दृष्टा लोकान्तरं गता:।
व्यासस्य तपसो वीर्याद् भवतश्च समागमात्॥ १९॥
प्रयोजनं च निर्वृत्तं जीवितस्य ममानघ।
उग्रं तप: समास्थास्ये त्वमनुज्ञातुमर्हसि॥ २०॥
 
 
अनुवाद
आपके संग और व्यासजी के तप के प्रभाव से मैंने अपने पुत्रों दुर्योधन आदि को स्वर्ग में जाते हुए देखा है; अतः मेरे जीवन का उद्देश्य पूर्ण हो गया है। हे अनघ! अब मैं घोर तप करूँगा। कृपया मुझे इसकी अनुमति दीजिए।॥19-20॥
 
‘Due to your association and the power of Vyasa's penance, I have seen my sons who have gone to heaven, Duryodhan and others; therefore, the purpose of my living has been fulfilled. O Anagha! Now I will engage in severe penance. Please give me permission for this.॥ 19-20॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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