श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 36: व्यासजीकी आज्ञासे धृतराष्ट्र आदिका पाण्डवोंको विदा करना और पाण्डवोंका सदलबल हस्तिनापुरमें आना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  15.36.17 
भवन्तं चेह सम्प्रेक्ष्य तपो मे परिहीयते।
तपोयुक्तं शरीरं च त्वां दृष्ट्वा धारितं पुन:॥ १७॥
 
 
अनुवाद
‘आपको यहाँ देखकर मेरी तपस्या में विघ्न पड़ रहा है। मैंने इस शरीर को तपस्या में समर्पित कर दिया था, किन्तु आपको देखकर मैं पुनः इसकी रक्षा करने लगा हूँ।॥17॥
 
‘Seeing you here is disturbing my tapasya. I had devoted this body to tapasya, but seeing you I have started protecting it again.॥ 17॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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