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श्लोक 15.36.17  |
भवन्तं चेह सम्प्रेक्ष्य तपो मे परिहीयते।
तपोयुक्तं शरीरं च त्वां दृष्ट्वा धारितं पुन:॥ १७॥ |
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अनुवाद |
‘आपको यहाँ देखकर मेरी तपस्या में विघ्न पड़ रहा है। मैंने इस शरीर को तपस्या में समर्पित कर दिया था, किन्तु आपको देखकर मैं पुनः इसकी रक्षा करने लगा हूँ।॥17॥ |
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‘Seeing you here is disturbing my tapasya. I had devoted this body to tapasya, but seeing you I have started protecting it again.॥ 17॥ |
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