श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 31: व्यासजीके द्वारा धृतराष्ट्र आदिके पूर्वजन्मका परिचय तथा उनके कहनेसे सब लोगोंका गङ्गा-तटपर जाना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  15.31.16 
द्रोणं बृहस्पतेर्भागं विद्धि द्रौणिं च रुद्रजम्।
भीष्मं च विद्धि गाङ्गेयं वसुं मानुषतां गतम्॥ १६॥
 
 
अनुवाद
द्रोणाचार्य को बृहस्पति और अश्वत्थामा को रुद्र समझें। गंगापुत्र भीष्म को मनुष्य रूप में अवतरित वसु ही समझो। 16॥
 
Consider Dronacharya as Brihaspati and Ashwatthama as Rudra. Consider Ganga's son Bhishma as a Vasu incarnated in human form. 16॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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