श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 31: व्यासजीके द्वारा धृतराष्ट्र आदिके पूर्वजन्मका परिचय तथा उनके कहनेसे सब लोगोंका गङ्गा-तटपर जाना  »  श्लोक 12-13
 
 
श्लोक  15.31.12-13 
नारायणं हृषीकेशमश्विनौ यमजौ तथा।
य: स वैरार्थमुद्भूत: संघर्षजननस्तथा।
तं कर्णं विद्धि कल्याणि भास्करं शुभदर्शने॥ १२॥
यश्च पाण्डवदायादो हत: षड्‍‍भिर्महारथै:।
स सोम इह सौभद्रो योगादेवाभवद् द्विधा॥ १३॥
 
 
अनुवाद
भगवान श्रीकृष्ण नारायण ऋषि के अवतार हैं। नकुल और सहदेव दोनों को अश्विनीकुमार ही समझो। कल्याणी! उस कर्ण को सूर्य ही समझो, जो केवल शत्रुता बढ़ाने के लिए उत्पन्न हुआ था और कौरवों तथा पांडवों में संघर्ष कराने वाला था। चन्द्रमा ही इस पृथ्वी पर पांडव पुत्र सुभद्राकुमार अभिमन्यु के रूप में अवतरित हुए थे, जिन्हें छः महारथियों ने मिलकर मार डाला था। वे अपने योगबल से दो रूपों में प्रकट हुए (एक रूप में वे चन्द्रमा में और दूसरे में पृथ्वी पर रहते थे)। 12-13॥
 
Lord Shri Krishna is the incarnation of Narayan Rishi. Consider both Nakul and Sahadev as Ashwini Kumar. Kalyani! Consider that Karna as Surya, who was born only to increase enmity and was going to create conflict between Kauravas and Pandavas. The moon itself had incarnated on this earth in the form of Subhadrakumar Abhimanyu, the Pandava son who was killed by six great charioteers together. With the power of his yoga, he appeared in two forms (in one form he lived in the moon and in the other on the earth). 12-13॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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