श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 3: राजा धृतराष्ट्रका गान्धारीके साथ वनमें जानेके लिये उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध तथा युधिष्ठिर और कुन्ती आदिका दु:खी होना  »  श्लोक 82-83
 
 
श्लोक  15.3.82-83 
दृष्ट्वा कृशं विवर्णं च राजानमतथोचितम्।
उपवासपरिश्रान्तं त्वगस्थिपरिवारणम्॥ ८२॥
धर्मपुत्र: स्वपितरं परिष्वज्य महाप्रभुम्।
शोकजं बाष्पमुत्सृज्य पुनर्वचनमब्रवीत्॥ ८३॥
 
 
अनुवाद
धर्मपुत्र युधिष्ठिर अपने चाचा महाराज धृतराष्ट्र को थके हुए, दुर्बल, पीले, हड्डियों से ढँके हुए तथा उपवास के कारण अश्रुपूरित अवस्था में देखकर पश्चाताप के आँसू बहाते हुए उनसे इस प्रकार बोले -॥ 82-83॥
 
Seeing his uncle, the great lord King Dhritarashtra, tired, weak, pale, covered with bones and in an unfit state due to fasting, Dharma's son Yudhishthira, shedding tears of remorse, spoke to him as follows -॥ 82-83॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.