श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 3: राजा धृतराष्ट्रका गान्धारीके साथ वनमें जानेके लिये उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध तथा युधिष्ठिर और कुन्ती आदिका दु:खी होना  »  श्लोक 75
 
 
श्लोक  15.3.75 
उपलभ्य तत: प्राणान् धृतराष्ट्रो महीपति:।
बाहुभ्यां सम्परिष्वज्य मूर्ध्न्याजिघ्रत पाण्डवम्॥ ७५॥
 
 
अनुवाद
उनके स्पर्श से राजा धृतराष्ट्र को मानो नया जीवन मिल गया और उन्होंने अपनी दोनों भुजाओं से युधिष्ठिर को छाती से लगा लिया और उनका सिर सूंघने लगे।
 
At his touch King Dhritarashtra seemed to have been given a new lease of life and he hugged Yudhishthira to his chest with both his arms and smelled his head.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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